Thursday, September 09, 2010

स्वर्ग की चाह

समय स्पर्श करता मुझमें संघर्ष भरता है,
पहाड़ो की चोटियाँ मुझे लालियित करती हैं,
नदियों की लम्बाई मुझमें उत्साह भरती है,
जो खड़े हैं पेड़ लम्बे, बुला रहे हैं आलिंगन करने को,
जो मोती है, समुन्द्र नीचे पड़ा, खींचता है स्पर्श करने को,
इतने खेल सारे हैं , यहाँ बिखरे पड़े हैं यूँ,
हे इंद्र फिर क्यूँ तू कहता है, चल मृत्युलोक से चल तू।

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