Wednesday, October 01, 2008

आतंक बोम्बस और भीड़ का

कहने को तो आतंकी भारत मे ही नही बल्कि हर देश और समाज मे हैंपर फिर भी भारत मे इनकी उपयोगिता कुछ और ही हैआतंक कई स्वरूपों मे भारत मे पल बढ़ रहा हैउसमे से एक आतंक बोम्ब्स (तुरंत का अथवा छिपा हुआ ) का है और दूसरा भीड़ का (जिसके पास अपना दिमाग नही हैइन्हे कोई और ही चलता है।)

बोम्बस का आतंक आपको घर में कैद करके और भीड़ का आतंक आपकी सोच को कैद करके रखता है।

भारत इन दोनों के लिए ही प्रयोगशाला रहा है। यह कहने की जरूरत नही की यहाँ के लोगो ने ही इन दोनों को पाला पोसा और बड़ा किया है। तभी तो अफ़वाह मात्र से भक्त से लेकर सरकार तक हिल जाती है। यह भी हास्यास्पद है की सरकार लोगो के बोम्ब न फटने देने में सहयोग से डरती है। उन्हें डर है की कही बोम्ब फट गया तो। लेकिन क्या अब भी हमें इंतजार करना चाहिए की कब सरकारी सहयोग आएगा कब वो बोम्ब को diffuse करेगा। और शायद इसी बीच में बोम्ब फट जाएगा (हो सकता है की मेरा तकनीकी ज्ञान ख़राब हो इसलिये चुप होना ही ठीक है। )। लेकिन अफ़वाहों के बोम्ब तो अक्सर ही फटते रहे हैं। एक बार तो गणेश जी बच्चों के बांटे का दूध भी पी चुके है। कुछ अफवाहें तो ऐसी रही जिन्हें फैलाने वाले पढ़े लिखे IT professional निकले। कोई मुझे ये बताये की ये IT professional पढ़ते ही क्यों हैं। ख़ैर छोडिये इन पढ़े लिखे अनपढो को, इन से तो अनपढ़ भले। पर विश्व्विध्याल्यो को तो सोचना चाहिए की वो क्या पढ़ा रहे हैं।

हाँ सही अब मुझे अपने मुद्दे पर वापिस आ जाना चाहिए। मैं कह रहा था की भारतीय जनता ने ही इन्हे पाला पोसा और बड़ा किया है। एक बोम्ब तो समझ ही गए होंगे (अफवाह बोम्ब)। बाकी बोम्ब भी इन्ही ने पाले हैं। कभी अपने पडोसी की चिंता की नही (अजी ये उनका निजी मामला है।), कभी उसके आधिकारो के बारे मे सोचा नही। मैं - मैं करते रह गए। कभी समझा ही नही की पड़ोसी की भी जिम्मेवारी लेनी चाहिए। शायद कभी पूछने की जर्रूरत ही नही हुई की जिन्दे हो या मर गए। अब तो सरकारें भी सोचती हैं की हमें neighborhood day मनाना चाहिए ।

अब चलिए भीड़ की तरफ़ रुख करते हैं। तो भाई बात यहाँ ये है की कुछ लोगो ने कुछ और लोगो (बिना पूछे ) की जान का ठेका ले रखा है। सो जबतब कुछ और लोगो की जान लेकर ये जताना चाहते हैं की ये उनपर जांनिसार कर सकते हैं। तो भीड़ का एक हिस्सा जान जाने वालों का हिमायती जताते हुए कुछ और लोगो की जान ले लेता है। मजा(रोना) तब आता है जब मरने वालों के सम्बन्धी ताली बजाते है। और तालियाँ दोनों और से भी बजती है। एक को खुशी है की मैंने दूसरी तरफ़ वालों को मार दिया और दूसरो को खुशी है की उसकी पार्टी join करने वालों की संख्या अब बढ़ जायेगी। इस तरह का plot एकता कपूर ने भी नही सोचा होगा। चलो मैं ही उससे न्योता दे देता हूँ। डरिए नही इस विचार पर कोई copyright नही है, अतः इसे आप भी काम ले सकते हैं।

तो अब कुछ मनोरंजन हो जाए। कुछ लोगो का कहना है की खुदा की एब्बादत नही करने वाला काफिर (शैतान) होता है, और उसे मार देना चाहिए। अरे सही इससे बढ़िया बात और क्या होगी। मैंने आज तक नहीं सुना की कोई आदमी नरकवासी हुआ हो या फिर जहनुम पहुँचा हो। चलो ठीक है अब स्वर्ग/जन्नत की population बढेगी। तब देखेंगे की उप्पर वाला resource management कैसे करता है। अच्छा ये बताओ की काफिर आदमी ही होतें हैं या जानवर और पेड़ पोधे भी। खुदा की एब्बादत तो जानवर पेड़ पोधे कोई नही करते। फिर ये बकरे की बलि क्यों देते हैं? मैंने तो सुना है की बकरी सबसे प्यारी चीज़ की निशानी होती है। खुदा ख़ैर करे।

चलो अब पैक उप कर लिया जाए अगला बोम्ब मेरा ही इन्तजार करता होगा। अभी कहा से ... हाँ सही याद आया वो रामानंद का सीरियल, अरे वही जिसमे खूब देर देर तक फुल्झडियां चलती थी। उसमे एक character था राम, बड़ा ही भोंदू व्यक्ति था। अररर बुरा मत मानिये आज की दुनिया मे भोले आदमी को सभी भोंदू कहते है। क्योँ गलत कह रहा हूँ क्या? उसमे दिखाया था की राम ने आखिर तक कोशिश की की जब तक हो सके युद्ध को टाल दो जिससे बेकसूर न मरे जाये, या यूँ कहूँ की जनता बच जाये। और तो और अंत मे जीता हुआ राज्य भी राक्षस को दे डाला। था न निपट गवांर। लेकिन अब तो rama बन गया gentleman, आज कल उसने security का ठेका outsource कर दिया है। उसके पीछे shiva ने भी। अब क्या कहूँ इन ठेकेदारों के भी के कई नाम और काम है। ये ठेकेदार चतुर, धूर्त और काकच्क्षु आदि से युक्त हैं। अपने client का बड़ा ध्यान रखते हैं, और चाहते है की client के भक्तो मे कोई कमी नहीं आये। भले ही बढ़ जाएँ। (सही है आज कल client satisfaction ISO मे included है। ) अभी तो अमिताभ को भी हड़काया ना साला अग्निपथ मे बड़े बड़े डायलोग मरता था। अभी तो सब अंदर गया ना किसी भगवान् ने भी नहीं सुनी ... उसकी तो।
हाँ लगता होगा कोई ये कहानी हँस हँस कर लिखता होगा। है ना। हाँ सही सोच रहे हो अभी रोने और हँसने मे कोई फर्क थोड़े ही रह गया है। जब शिक्षा अशिक्षित छोड़ दे, जब जिन्दगी जिन्दगी से प्यार करना छोड़ दे, जब पेड़, पोधे, जानवर, आदमी सब resource नजर आए तो और क्या उम्मीद होगी। जब localization का principle के चलते nuclear family में भी local concept निकल आए तो क्या होगा। तब शायद अकेले पेड़ के तूफान आया करेंगे और एक - एक कर इस जंगल के सारे पेडो को निगल जायेंगे और यहाँ सिर्फ़ रगिस्तान रह जाएगा। काश ये अंग्रेजो का राज होता, कम से कम सरकार पर ही दोष मढ़ देते, लेकिन इन क्रांतिकारियों ने वो सुकून भी छीन लिया है। अब तो दुआ है की उप्पर वाले यदि कही है तो इनको जिन्दगी से गले मिलना सिखा दे। तेरी बनाई दुनिया की खूबसूरती पर रश्क करना इन्हे सिखा दे। तो शायद कुछ भला हो जाए।



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