Wednesday, May 15, 2013

शोधयात्रा के सबक

मुझे मेरे किसी दोस्त से मालूम पड़ा की अनिल सर शोध यात्रा पर जा रहे है| और वे ऐसा हर साल दो बार करते है| मै पहले से ही किसी ऐसी चीज की तलाश में था जो किसी तरह मुझे वास्तविक काम से जोड़ दे, मेरा मतलब जो वाकई लोगो से जुडी समस्याओ के बारे में हो| मै हमेशा से इस तलाश में हु की कोई ऐसा काम मिले जिसे मै सच्चाई के साथ कर सकू, जिससे मै लोगो मै ख़ुशी बाँट संकू, और उनके साथ काम में आनंद ले सकू| अत: यह एक सुनहरा मौका था जब मै नीचे उतर कर देख सकता था| तब अमित सर के साथ मै ने शोधयात्रा में जाने का कार्यक्रम बनाया|
हम शाम को वर्धा पहुंच गए और उसके बाद ऐसे बहुत से लोगो से मिलना हुआ जो शोधयात्रा में अक्सर जाया करते है| और कुछ लोग (हम जैसे) जिन्हें इस बार ही मालूम पड़ा था, वे यहाँ पहुंचे| अगले रोज दिन भर की कार्यशाला चली और बहुत कुछ ऐसा जानने को मिला जो शायद अखबारों में किताबो में कभी पढने को नहीं मिलता| वहां HMT (गेहूं की संकर जाती) के जनक, centre for science for villages की डायरेक्टर, कई NGOs के संचालक, गांवो के ऐसे लोग जो गाँवो की समस्याओ से जूझ रहे है, भी मौजूद थे| इन सब के मौजूदगी से हमें वर्धा के गांवो के बारे में, वहां की समस्याओ के बारे में, लुप्त होते ज्ञान और बहुत से लोगो द्वारा चलाये जा रहे अभियानों के बारे में मालूम हुआ| ये सभी लोग किसी न किसी तरह इस क्षेत्र के उत्थान में लगे हुए है| ऐसा बहुत कुछ एहसास हुआ जिससे मालुम पड़ता है की न जाने कितने ही लोग आराम पसंद जिन्दगी छोड़ कर कुछ करने में जुटे हुए है, अतीत के सुनहरे पन्नो के रेशमी यादगार पलों से भविष्य को सुनहरा करने की चाहत में इस अंधकारमय वर्तमान में दिये की तरह जल रहे है| उन्हें अपनी नहीं दुसरो की चिंता है, कुछ मेरे जैसे लोग है जो यहाँ घनात्मक उर्जा स्रोत के पास उर्जा बटोरने पहुंच गए|
इसके उपर गांधीजी और विनोबाजी का आश्रम अपने आप में दाता होने की प्रतिष्ठित होते हुए आज भी उदारता से लगे हुए है, उस जगह का वातावरण ही जैसे मुनियों के आश्रम जैसा हो गया है, वहां बैठ के समझ आता है की क्यों एक छोटी सी कुटिया world peace conference के लिए सर्वथा उपयुक्त थी, क्योंकी वहां गांधीजी ने नई तालीम की शुरुवात की, जो की वास्तव में समाज की भलाई से ओतप्रोत है, उसमे विज्ञान की महत्ता नहीं सामाजिक और आत्मिक कल्याण को महत्त्व दिया गया है, वह प्रेम से ओतप्रोत है, उसमे प्राणी की भावनाओ और प्रकृति के स्वरुप के लिए ही किसी भी चीज को मह्त्व दिया गया है| ऐसी जगह से शोधयात्रा शुरू करना हमारे लिए प्रेरणाप्रद रहा और कई लोगो का आशीर्वाद मिला|
इस शोधयात्रा का श्रेय अनिल गुप्ताजी और उनके सहयोगियों को जाता है जिन्होंने सालो-साल मेहनत कर कई मुकाम हांसिल किये| अनिल गुप्ताजी को देखकर मुझे लगा की शायद इनकी अधीरता ही उनको इस मुकाम पर पहुँचने मदद कर रही है| यहाँ ये लोग गाँवो के लोगो की बौधिक संपदा जो उनकी या उनके इर्दगिर्द की समस्याओ से निपटान के लिए उपाय खोजती है, पर्यावरण संरक्षण, वन संपदा और पौराणिक समझ को बनाये रखने की कोशिश करती है उनको सहेजने और corporate हमलो से बचाने कि कवायद कर रहे है| ये कोशिश करते है दादी-नानी के नुस्खो को बचाने और उन्हें परखने कि और उसके बाद मे ये उन्हें राष्ट्रीय database में सहेजा जाता है, ताकि इन्हें कोई भी काम में ले सके| इस ही तरह ग्रामीणों द्वारा बनाई गई मशिनो के साथ किय जाता है, जिसके patent rights उसके सर्जक के नाम पर लिए जाते है और फिर अनिल सर कि टीम उसका business model बना कर entrepreneurs को देती है जिससे वह अधिकाधिक लोगो के जीवन को उन्नति की राह पर ले आये|

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