Tuesday, August 17, 2010

मेरी अभिलाषा

मैंने पल-पल संग्राम किया है
शैतानियों को करने को
हर समय तलाश किया है
कुछ उद्यम (उधम) हो करने को
समय के कोनो - कोनो से झांक झांक कर
मैंने ढूंढा समय , समय बदलने को
चाहता हूँ की ढूंढ़लूँ कुछ और तरीकों को
फैला दूँ फर्श पर गोलियां समय के फिसलने को
या फिर कोई गढ़ा बना दूँ समय के उसमे गिरने को
बचपन की शैतानियाँ जो छिप गयी थी कही पर
उघाड़ दूँ उनको यहाँ दर्पणों के महल भीतर
चाहता हूँ कुछ और ऐसी शैतानियाँ करने को, परेशान हो शहर मेरा, देश और दुनियां हो परेशान
इस तरह तृप्ति मिलेगी और खुश होगा हृदय
जब देखूंगा मैं सूरज मुह चिढाऊंगा उसे
समय को बढ़ाने चला था खिंच लिया पीछे उसे
अभी तो दिल मैं गुदगुदी हुई है, अभी तो दिल बहका है जरा सा
और इक शैतानी बताओ जिसको करने मे मजा हो।

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