Saturday, March 31, 2012

मुस्कराहट


इस  मुस्कराहट  के  लिए  
तेरी  उस  प्यारी  बोली  के  लिए  
ऐ  जिन्दगी  की  राहों  में  मिलने वाले 
राहगीर  इस  अपनी  सी  ख़ुशी  के  लिए  
दिल  के  दरवाजे  खोल  के  बैठा  हूँ 
इस  तन्हाई  में  तेरे  अपनेपन में  
मै समय  को  रोक  के  बैठा  हूँ 
मै  तेरा  होने  की  सोच  के बैठा हूँ 


Sunday, March 25, 2012

बुद्धुजीवियों ने केजरीवाल को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से भगाया

       २३ मार्च को कोयना हॉस्टल में हुई आम सभा ज ने वि के इतिहास में वैचारिक विपन्नता और ज ने वि के आम छात्र के लोकतान्त्रिक अधिकारों के हनन के रूप में देखी जाएगी| कोयना की मैस हम जैसे लोगो से भरी थी| और अरविन्द अपना मत रख रहे थे| अपना वक्तव्य पूर्ण करने के बाद जब प्रश्नों के जवाब देने लगे, तब एक छात्रा ने लम्बी सूची निकाल कर सवाल पर सवाल दागने शुरू कर दिए| जिन्हें जवाब आने-ना आने की परवाह किये बगैर प्रस्तुत किया जा रहा था| और इस तरह ज ने वि के विवेकपूर्ण वातावरण की धजियाँ उडाना शुरू किया गया| बात यही समाप्त नहीं हुई| जब अरविन्द ने सूची के कुछ सवालों को छोड़कर कुछ अन्य छात्रों के प्रश्नों का उत्तर देना शुरू किया, तब पुन: इन छात्रों के समूह ने शोरगुल मचाकर सभा के आचरणों को ध्वस्त कर दिया| और अपने सभी प्रश्नों के उत्तर माँगने लगे| इससे पहले की मैं अपने प्रश्नों और अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों की माँग करू, मैं आपको वह यक्ष प्रश्न बताना चाहूँगा जिसपर कुछ छात्र आपा खोकर सभा करने /होने की मर्यादा को भंग करने  पर उतारू हो गए| यह प्रश्न था-

"अरविन्द जब आप ______ वर्ष में YFE के banner तले आये थे, तब आपने OBC आरक्षण के खिलाफ बोला था| क्या यह सच है?"

अब मैं ज ने वि का एक आम छात्र होने की हैसियत से छात्र समुदाय से कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ जो निम्नलिखित  है-

  1. क्या  ज ने वि समुदाय का हिस्सा होने के नाते मुझे अरविन्द से सवाल पूछने / उन्हें सुनने का अधिकार नहीं है?
  2. क्या हम ज ने वि समुदाय के रूप में अरविन्द जैसे नामो से इतना डर गए है की हम उन्हें कुछ बोलने ही नहीं देना चाहते?
  3. यदि अरविन्द OBC आरक्षण का विरोध कर भी रहे है तब भी क्या उन्हें  भ्रष्टाचार  पर बोलने का कोई हक़ नहीं है?
  4. जब हम कांचा इलाही द्वारा "Pork and Beef Politics of Food Culture" के बारे में शान्ति से सुन सकते है| तब आम आदमी को त्रस्त करने वाले, रोजमर्रा के जीवन में रचे बसे भ्रष्टाचार के खिलाफ सुनने में हमारी चूलें  क्यों हिलती है?
  5. क्या हम ज ने वि के छात्र जो सार्वभौमिक बौद्धिक होने का दम्भ भरते है, अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों का सम्मान कर सकते है?
  6. क्या हम, हमारी विचारधारा से मेल न खाने वाली विचारधारा का सम्मान करना जानते है?
  7. क्या हम पहचान विलुप्त होने से भयभीत, दुसरो के अधिकारों का हनन करने वाली कुत्सित मानसिकता को हाशिये पर लाने के लिए तैयार है?
  8. क्या हम ज ने वि के उन्मुक्त वातावरण के काबिल है?
  9. या अपनी पहचान खोजने की लालसा में लगे एक पागल की तरह है जो कुछ भी हरकत कर के अपने होने का एहसास दिलाना चाहता है?


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