Thursday, June 16, 2011

भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार जीवन में रच गया है,
कोई क्षत्रिय नही, कोई देव नही,
जो धरा पर बच गया है,
सब की उसके दूत बने है और बाकी बुत बने है,
रो रही है धरा प्यारी, चीत्कार करती बन वो नारी,
सिब्बल - राहुल से सरीखे लूट रहे है आँख मीचे,
भ्रष्टाचार प्रबल हो रहा है, मनमोहन मोहरा बन गया है,
सोनिया ने प्रश्रय दिया है, लगता है ज्यों गोद लिया है,
या ये जो भूल होतो, बाहर निकलो, बाहर झाँको,
देखो देश रो रहा है, देसजन संतोष खो रहा है,
आज जनता प्यारी समझी, साठ सालो में क्या खोया,
सांप्रदायिकता थी दिखावा और लूटने का था मेला,
और जो हम तुम थे अकेले, लूटते थे सब मज़े से,
आज जो हम एकजुट हो तो, तोड़ देंगे किले सारे,
भ्रष्टाचार का नकाब उतारे, राहुल-दिग्विजय का स्वांग उतारे,
आज जब एहसास हुआ है, यह तो तुझमें भी छिपा है,
कोई हाय कैसे बचाए, लिपटे सर्पो को कैसे हटाए,
अब गरुड से आस कैसी, पर शांति से बात कैसी,
अब तो तुझे ही उठना होगा, अपना दुर्ग व्यवस्थित करना होगा,
लेने होंगे तलवार भाले, चलना होगा प्राण लेकर,
आज और कोई ना होगा, तू और तेरा पुरुषार्थ होगा,
अब तुझे ही चलना होगा, अपना घर स्वयं व्यवस्थित करना होगा,

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